बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

हल जोतना चाहते हैं या एसी ऑफिस में बैठना... :)


Rashmi Ravija
आज कहीं एक मजेदार तर्क पढ़ा..."आप खेत में हल जोतना चाहते हैं या AC ऑफिस में बैठकर काम करना."
AC ऑफिस में बैठकर वो किसान और उसके बेटे तो काम नहीं ही करेंगे .और अगर ये ऑप्शन हो तो भी अपना स्वामित्व और गुलामी का फर्क बहुत बड़ा है . ये तर्क भी दिया जा रहा है ," जमीन से अच्छी फसल नहीं हो रही, सुविधाएँ नहीं हैं, इसलिए वहां फैक्ट्री लगाई जाये तो उसमे क्या बुराई है ?...इसके बदले सुविधाएं उपलब्ध क्यों नहीं कराई जा रहीं कि बढ़िया फसल हो.
दो साल पहले मेरी कामवाली अपने गाँव वापस लौट गई .सात साल पहले वो अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए मुम्बई आई थी .यहाँ घरों में काम करके बच्चों को पढ़ाया और जब वे नौकरी पर लग गए तो वो गाँव लौट गई .पिछले साल मिलने आई थी , अच्छी तंदरुस्त हो गई थी और थोड़ी काली भी .उसके पास काफी जमीन है, उसमें बढ़िया फसल हुई थी, कपास, सोयाबीन,चना.
अभी कुछ दिनों पहले फिर से मिलने आई थी. इस बार उसके खेत खाली पड़े हैं .पानी नहीं बरसा .फसल नहीं हो पाई .वो कुछ महीने फिर से घरों में काम करके गाँव लौट जायेगी क्योंकि उसके पास जमीन है और शायद इस साल अच्छी बारिश हो.
यही उसके खेतों को पानी की सुविधा मिली होती और उसके गाँव में अच्छे स्कूल होते तो शायद वो गांव छोड़कर शहर आती ही नहीं. अगर उसके पास जमीन होगी ही नहीं तो वो सारी ज़िन्दगी ये झाड़ू पोछा ही करती रहेगी .उसका पति हमेशा गाँव में ही रहा .उसे भी मजदूरी करनी पड़ेगी .रखा हुआ धन कितने दिन चलता है.
एक जमीन अधिग्रहण ऐसा भी
Sharad Shrivastav
दिल्ली मे कामन वेल्थ गेम के समय बहुत से नए फ्लाई ओवर बने थे.नेहरू प्लेस से एनएच 8 तक की रोड को सिग्नल फ्री करने के लिए उस पर बहुत से फ्लाई ओवर बनाए गए.लेकिन अंतिम फ्लाई ओवर राव तुला राम मार्ग का फ्लाई ओवर 6 लेन की जगह सिर्फ 2 लेन का बनाया गया.बाकी फ्लाई ओवर बनाने के लिए लोगों की दुकाने तोड़ी गयी, मकान हटाये गए.लेकिन ये सब कुछ राव तुला राम पर नहीं हो सका.आज उस 2 लेन फ्लाई ओवर की वजह से घंटो का जाम लगे रहने की आम मुसीबत है.लोग फँसते है, पेट्रोल जलाते हैं अपना कलेजा जलाते हैं, सरकार को इस 2 लेन फ्लाई ओवर की वजह से कोसते हैं और आगे बढ़ते हैं.
सवाल है की ये फ्लाई ओवर 2 लेन का ही क्यों बना, बाकी फ्लाई ओवर की तरह 6 लेन का क्यों नहीं.जवाब है इस फ्लाई ओवर के एक तरह बसे लोग, जो बहुत प्रभावशाली हैं.जिनमे चैनल पर बोलने वाले प्रसिद्ध न्यूज़ एंकर भी हैं.इन लोगों के घरों की जमीन ही एक बीघे से ऊपर है.दिल्ली के पॉश इलाके मे 1 बीघे जमीन का मतलब आप समझते ही होंगे की वहाँ बसे लोग कैसे होंगे.खैर सवाल उनकी जमीन का भी नहीं था.सरकार को फ्लाई ओवर बनाने के लिए उनकी जमीन नहीं चाहिए थी.उनके घर के बाहर की सर्विस लेन चाहिए थी, जो वैसे ही सरकारी थी.लेकिन प्रभाव तो अब ऐसा ही होता है.बाज लोगों ने वो भी नहीं लेने दी.
नतीजा आज सामने है.तो साहब जमीन अधिग्रहण का एक रूप ये भी है.सवाल सिर्फ कानून बनाने का नहीं कहाँ किस पर लागू करना है इस नीयत का भी है.जमीन सिर्फ किसान की ही नहीं ली जाती, शहरो मे भी जमीन ली जाती है.इस कानून की मार सब पर है, लेकिन एक बराबर नहीं. यूपी के एक छोटे शहर मे रेलवे क्रासिंग पर फ्लाई ओवर इसलिए न बन सका क्योंकि मंत्री महोदय अपने घर की बाउंडरी गिराने को तैयार न हुए, थोड़ी सी जमीन छोड़ने को तैयार न हुए.वो फ्लाई ओवर वहाँ से तीन किलोमीटर दूर बनाना पड़ा.

1 टिप्पणी:

  1. शरद जी के पोस्ट से भूमि अधिग्रहण की एक ये सच्चाई भी पता चली . हर जगह आम आदमी ही कष्ट झेलने को अभिशप्त है .

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