सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

किसानों को देश निकाला दे दीजिये हुजूर...


कहने को बिहार सरकार ने किसानों की धान की देश में सबसे ऊंची कीमत 1560 रुपये प्रति क्विंटल देने की घोषणा कर दी है, मगर हकीकत है कि राज्य के अधिकतर इलाकों में घोषणा के दो माह बीत जाने पर ही धान खरीद केंद्र अब तक नहीं खुले हैं. जहां खुले भी हैं वहां सौ अड़गे और बहानेबाजी, लिहाजा किसान इस बार खरीफ की पैदावार लेकर बिचौलियों की शरण में जाने को विवश हैं. वहां उन्हें 1100 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक मिलने की कोई सूरत ही नहीं बन रही है. यह स्थित तकरीबन बिहार के हर इलाके की है. यहां बासुमित्र ने पूर्णिया जिले के धमदाहा अनुमंडल के किसानों के जमीनी हालात को बताते हुए यह समझने-समझाने की कोशिश की है कि आखिर जमीन पर घट क्या रहा है... दिल्ली में सत्ता के उखाड़-पछाड़ और ओबामा के आने की रौनक के बीच इस खबर को भी पढ़े जाने की जरूरत है. क्योंकि सोशल मीडिया के इस दौर में भी इस बात का इंतजाम अब तक नहीं हो पाया है कि इंसान बिना कुछ खाये जिंदा रह सके....
(तसवीर के लिए प्रशांत चंद्रन का आभार)
पिछले साल के नवंबर महीने में धमदाहा के किसानों की बोली में जो ठसक थी वह इन दिनों गायब है. उनके मुंह से बकार नहीं फूट रहा. घर धान से भरे हैं, मगर बुद्धि काम नहीं कर रहा है कि बेचें कि बचा लें. पैकार(व्यापारी) का भाव ग्यारह से उपर नहीं जा रहा. पिछले दो माह से लोग रोज पैक्स जाकर देखते हैं कि सरकारी खरीद केंद्र खुला कि नहीं. अखबारों में 1560 रुपये के भाव के दावे भी पुरानी फिल्म के पोस्टर की तरह उतर गये हैं. कहीं कोई धान खरीद की बात नहीं कर रहा. न पक्ष, न विपक्ष. रोज दरवाजे पर धान को फैला देते हैं कि नमी की कमी बरकरार रहे, कहीं फफूंद न लग जाये... और पता लगाते रहते हैं कि कहीं कोई पैकार ज्यादा भाव तो नहीं दे रहा.
पूर्णिया जिले का कृषि विभाग बताता है कि इस बार जिले में लक्ष्य से अधिक धान की खेती की गयी है. जिला कृषि पदाधिकारी इन्द्रजीत प्रसाद सिंह कहते हैं, विभाग से तो सिर्फ 98 हजार हेक्टेयर जमीन पर धान की खेती का लक्ष्य आया था, जबकि किसानों ने 1 लाख 2 हजार हेक्टेयर में धान रोप दिया. हालांकि इससे किसानों को कोई नुकसान नहीं हुआ. किसान इंद्र भगवान को दोष नहीं देते हैं, कहते हैं, भले शुरुआत पानी कम पड़ा मगर जाते-जाते कसर पूरी कर दिया. ऐसे उपज भी जोरदार हुई. धान की बाली को देखकर किसान मूंछ पर ताव दे रहे थे कि इस बार तो मकई के नुकसान का कसर भी निकल जायेगा. पिछले सीजन में मक्के की फसल गड़बड़ा गयी थी.
गांव के किसान नवीनचंद्र ठाकुर कहते हैं, किसानों के साथ यही होता है. कभी उपरवाले की मार तो कभी सरकार की बेवफाई... जब मौसम खराब होता है तो हमलोग मन मसोस कर रह जाते हैं. मगर जब बंपर पैदावार हो और फसल का पैसा ठीक से नहीं मिले तो समझ नहीं आता, क्या करें. उड़ती-उड़ती खबर है कि सरकार इस बार धान खरीदना ही नहीं चाहती. एक तो सरकारी गोदाम पहले से फुल है, फिर सुन रहे हैं खाद्य सुरक्षा के कानून में भी कटौती होने वाली है. इसलिए मीडिया में सरकारी खरीद का ढोल जरूर पीटा जा रहा है, मगर सरजमीन पर ऐसा इंतजाम किया गया है कि क्या कहें... देख ही रहे हैं, फरवरी में भी क्रय केंद्र नहीं खुला है...
नवीन जी तो थोड़े समृद्ध किसान हैं. वे थोड़ा नफा-नुकसान झेल लेते हैं. मगर लीज पर खेत लेकर खेती करने वाले छोटे किसान तो धान की बात पूछने पर ही बमक उठते हैं. नागिया देवी कहती हैं, पहले जहां 3 से 4 हजार रुपये में एक बीघा जमीन लीज पर मिल जाता था, अब लीज का रेट भी दो गुना से अधिक बढ़ गया है. उसने बेटी की शादी के लिए सूद पर पैसा लिया था. सोचा था, धान बेचकर कर्ज चुका देगी. अब तो महाजन के सामने जाने में डर लगता है.
बटाई पर खेती करने वाले मनोहर बताते हैं, हमने पंप सेट चलाकर पटवन किया था. डीजल अनुदान का पैसा भी टाइम पर नहीं मिला. पता चला कि पैक्स में इस बार धान का रेट 1560 रुपया हो गया है, हम उसी उम्मीद में थे. अब आधा धान 1050 रुपया के रेट से बेचे हैं, बांकी बचा कर रखे हैं कि कहीं रेट बढ़ जाये या खरीद केंद्र ही खुल जाये...
लीज पर खेती करने वाले ब्रह्म मुनि बताते हैं, चाहे धान की खेती हो मक्के की किसानी गरीबों के बस से बाहर होती जा रही है. खेत जुताई से लेकर खाद-बीज और मजदूरी तक बढ़ती जा रही है जिस कारण से खेती की लागत पहले की तुलना में काफी बढ़ गयी है. धान की खेती का हिसाब पूछने पर वे कहते हैं, अगर लीज ले कर खेती की जाय तो एक बीघा धान की खेती में 12 से 13 हजार रुपये का खर्च आ जाता है. वहीं एक बीघा में 16 से 20 क्विंटल धान उपजता है. किसान परिवार लगातार 4 महीने की मेहनत के बाद मुश्किल से 6 से 7 हजार रुपये बचा पाता है वो भी तब फसल अच्छी हो और धान का सही कीमत मिले. मगर इस बार तो उस पर भी आफत है... सरकार तो 1560 रुपया का रेट ब्रोडकास्ट(ब्रॉडकॉस्ट) करके ताली पिटवा रही है, यहां एक कोई एक कनमा धान खरीदने के लिए तैयार नहीं है. इससे अच्छा तो किसानों को देश निकाला दे दीजिये हुजूर...

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