शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

चनका में चमका आभासी दुनिया का सितारा


बीते रविवार को माटी के कथाकार गिरींद्रनाथ झा के गांव चनका में फेसबुकियों की जमात जुटी थी. साइबर संसार के याराने को असली दुनिया में टटोलनी की कोशिश हमारा पुराना शगल है. मगर यह जुटान अक्सर राजधानियों और बड़े शहरों में होता है. शायद ऐसा पहली दफा हुआ कि लोग एक छोटे से गांव में जुटे, वह भी भीषण सरदी में. तसवीरों में घूरा तापते हुए बतियाते लोगों को देखा जा सकता है. छोटे से गांव में साइबर महारथियों के इस जुटान को फेसबुक और वेबमीडिया समेत अखबारों ने भी भरपूर तवज्जो दी. कई लेख लिखे गये. भरपूर तसवीरें साझा की गयीं. उन्हीं में से एक आलेख सुनील झा जी का है जो मूलतः मैथिली में था, हमारे अनुरोध पर उन्होंने इसे हिंदी में करके भेजा है, पगडंडी के सहयात्रियों के लिए...
सुनील कुमार झा
रवि‍वार को पूर्णिया के श्रीनगर प्रखंड के एक छोटे से गाँव चनका में, जब देश-विदेश से आए आभासी दुनिया के सितारे अपनी चमक बिखेर रहे थे उस समय बचपन में हीरो-होंडा का एक विज्ञापन बार-बार याद आ रहा था, जिसमें कहा गया था- जो सड़क गाँव से शहर की ओर जाती है, वही शहर से गाँव की ओर भी जाती है. स्थानीय किसान और सोशल मी़डिया में सक्रिय गिरीन्द्र नाथ झा और श्रीनगर डयोढी के चिन्मयानंद सिंह ऐसे ही रास्ते को आज कोलकाता और दिल्लीत से गाँव की और लाने का प्रयास कर रहे हैं. इनके प्रयास से सोशल मीडिया मीट का आयोजन एक ऐसे गाँव में हुआ जहाँ पहुंचने के लिए अभी भी ढंग की सडक नहीं है, लेकिन आभासी दुनिया से संपर्क के लिए इंटरनेट उपलब्धल है. यह आयोजन बाल्यकाल के भतकुरिया भोज (बच्चों का सामुहिक भोज) का भी स्मरण करवा दिया जिसमें सभी यार दोस्त पुरानी बातें भूला फिर से एकजुट होते थे. तरह-तरह के लोग इस आयोजन में पहुंचे थे. कोई वामपंथी था, तो कोई उत्तर आधुनिक विमर्शकार. कोई आरएसएस का प्रचारक था तो कोई पत्रकार. सोच और भाषा में सब अलग-अलग, लेकिन सबों को जोड़ रही थी एक अदृश्य तरंग. लगभग पूरे दिन के इस जुटान में मुख्य रूप से सोशल मीडिया के लोकतंत्र पर चर्चा हुई. कुछ पुराने और गंभीर सदस्यों ने इसकी पैरवी की कि फालतू टाइप के पोस्ट पर सामूहिक प्रतिबंध लगाया जाये, लेकिन यह प्रस्ताव बांकी सदस्यों को नहीं भाया और प्रस्ताव चर्चा के बिना खारिज कर दिया गया. मीट में जो तार्किक निष्कर्ष निकला वो यह था कि अभिव्यक्ति की आजादी के समर्थक अब ज्यादा हैं जबकि विरोध करनेवालों की संख्या कम होती जा रही है. सोशल मीडिया की दुनिया एक समुद्र की तरह है और इसमें सब को अपनी अपनी नदी को विसर्जित करने के लिए विनम्रता से अनुमति दिया जाना चाहिए.
फेसबुक, ट्विटर और ब्लॉग जैसे सोशल मीडिया से जुड़े लोग जब शहर से कोसी के कछार का रुख करते हैं तो किस्सा बदल‍ जाता है. अमर कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की धरती पर सोशल मीडिया के दिग्गज जब इकट्ठा हुए तो माहौल आंचलिक ग्लोबलाइजेशन का हो गया. बैठक में गाँव के विकास पर कई सुझाव आए और उस पर चर्चा हुई. सबने एक सुर में गाँव के विकास में इंटरनेट और सोशल मीडिया के योगदान को महत्वपूर्ण माना. इसके अलावा ग्रामीण भारत, डिजिटाइलेजशन और सोशल मीडिया से जुड़े तमाम मुद्दों पर इस बैठक में चर्चा हुई. बैठक में मुख्य रूप से नेपाल से आए युवा उद्यमी प्रवीण नारायण चौधरी, वरिष्ठ साहित्यकार और बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी तारानंद वियोगी, स्टील ऑथॉरटि ऑफ इंडिया के सेवानिवृत अधिकारी एनके ठाकुर, शिक्षाविद राजेश मिश्र, धरोहर रक्षा पर काम करने वाले अमित आनंद सहित कई लोग शामिल थे.
कार्यक्रम के आयोजक गिरीन्द्र नाथ ने कहा कि उन्होंने अपने कु‍छ दोस्तों से विचार करने के बाद चनका गाँव में इस तरह के आयोजन की योजना तैयार की थी और आज सबकुछ सफल होता देख वह बहुत खुश हैं‍. उन्होंने कहा‍ कि आगे भी इस तरह के कार्यक्रम आयोजित होते रहेंगे. गाँव में विकास की किरण के साथ डिजिटल दुनिया की रोशनी भी पहुँचे इसकी जरूरत है. प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया के नारे को गाँव तक पहुंचाने के लिए ऐसे कार्यक्रमों की जरूरत है, ताकि गाँव देहात के लोग भी इंटरनेट के ताकत और फायदे को समझ सके. गिरीन्द्र नाथ ने कहा कि वो आगे भी गाँव-देहात में इस तरह के बैठकों को आयोजित करते रहेंगे. इसके अलावा वह गाँव में स्कूली छात्र के लिए भी एक योजना पर काम कर रहे हैं, इसके लिए आईआईटी खडगपुर के छात्रों के संग वह संपर्क में हैं. योजना के तहत चनका गाँव के ग्रामीण और स्कूली बच्चों को डिजिटल दुनिया से रूबरू कराया जाएगा.
चनका बने आधुनिक ग्रामीण बिहार की पहचान
विगत एक साल पहले तक पूर्णिया के श्रीनगर प्रखंड के छोटे से गाँव चनका का नाम आसपास के जिला के भी लोग ठीक से नहीं जानते थे, लेकिन पिछले एक साल में स्थानीय किसान और सोशल मी़डिया में सक्रिय गिरीन्द्र नाथ झा ने चनका को आधुनिक ग्रामीण बिहार का केंद्र बना दिया है. इस काम में उनका साथ दे रहे हैं बनैली स्टेट के श्रीनगर डयोढी के कुमार चिन्मयानंद सिंह. श्रीनगर बिहार के पहले शिक्षामंत्री कुमार गंगानंद सिंह का गाँव भी हैं. चनका को आधुनिक ग्रामीण बिहार का केंद्र बनाने वाले गिरीन्द्र नाथ झा खुद भी शिक्षित युवाओं के लिए एक आदर्श बन गए हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षित और कानपुर और दिल्ली में पत्रकारिता करने के बाद श्री झा चनका के खेत में अपने आप को समर्पित कर चुके हैं. उनकी किसानी रेणु और गुलजार के सपने को साकार करने के लिए है. गिरीन्द्र नाथ झा उस युवा टोली के लिए एक उदाहरण है जो अपनी जमीन छोड़ परदेश नौकरी के लिए जाते हैं. गिरीन्द्र नाथ झा और चिन्मयानंद सिंह की जोड़ी यहाँ के किसानो को यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया टूल्स से भी परिचय करवा चुके हैं‍. इसके साथ ही पिछले साल इन सबों के प्रयास से चनका में यूनिसेफ के सौजन्य से ग्राम्य फिल्म महोत्सव का आयोजन हुआ है. इसके अलावा अंतराष्ट्रीय साइकि‍ल चालक जोड़ी डेविड आओर लिंडसे फ्रेनसेन चनका आए थे और चनका के किसानों से उन्होंने मुलाकात की थी.

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