सोमवार, 19 जनवरी 2015

रिबनवाली लड़की नहीं थीं


मिथिलेश कुमार राय
प्रतीकात्मक तसवीर
वसंत आ रहा था. खेतों में हरे-हरे गेहूं के पौधे और पीले-पीले सरसों के फूल पछिया हवा के संग झूम रहे थे. खेत की मेड़ पर कुछ लड़कियां विचर रही थीं. सभी लड़कियों ने दो चोटी बांध रखी थीं. गूंथे हुए बालों में हरे पीले नीले लाल रिबन से फूल बने हुए थे. खेत फूलमय हो गया था. चिड़िया हवा में गोते लगा रही थीं. लेकिन आँख खुली तो सबकुछ था,रिबनवाली लड़की नहीं थीं. मैं 17 साल पीछे लौटा तो मेरी बंद आँखों के पार रंग-बिरंगे रिबन से अपने बालों को बांधी कई लड़कियां खिलखिला रही थीं. दोपहर को मनिहारावाला मिल गया. मैंने उसे टोका. पूछा कि रिबन है... तो वह ठठाकर हँस पड़ा. साईकिल रोककर उसने बताया कि अब लड़कियों ने बाल गूंथने की क्रिया पर लगाम लगा दिया है. बाल एक क्लिप या रबड़-बैंड के साथ खुले-खुले उड़ते रहते हैं.
मनिहारावाले ने भी रिबन से बाल बाँधने वाली लड़कियों को कई वर्षों से नहीं देखा था. वह इतने वर्षों से मनिहारा का सामान बेच रहा है कभी किसी ने रिबन के बारे मेँ उस से नहीं पूछा. उसने मुझे बताया कि रिबन से बाल बाँधने वाली लड़कियां अब सिर्फ बीत गये दृश्यों में मिलेंगी.
इस बात का जिक्र मैंने अपनी बड़ी बहन से किया तो वह भी खिलखिलाने लगीं. बताया कि बचपन में जब वो मेला-ठेला जाने लगती थीं, माँ उसके बालोँ को गूंथकर लाल रिबन से एक फूल बनाती थी. कितना अच्छा लगता था. तब सारी लड़कियां रिबन का ही इस्तेमाल किया करती थीं. स्कूल आनेवाली हरेक लड़कियों के बालों में एक फूल खिला होता था जो रिबन से बना होता था. बहन की बात सुनकर माँ को भी अपना बचपन याद आ गया. उसने बताया कि तब क्लिप और रबड़-बैंड जैसा कुछ भी नहीं था. बाल बांधने के लिए सिर्फ रिबन था. माँ ने अपना पुराना संदूक खोला. बहुत ढ़ूंढ़ा. लेकिन रिबन कहीं नहीं मिला. अब माँ भी रबड़ बैँड लगाकर अपने बालों को संवारती हैं. रिबन कब कहां खो गया, उन्हें भी कुछ याद नहीं.
शाम को चाय की दुकान पर अपने एक पत्रकार साथी से पूछा तो उन्होंने याद दिलाया कि रिबन को उद्घाटन में कैंची से काटने के लिए जब्त कर लिया गया है!

1 टिप्पणी: