शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

कुहरे में डूबा गाँव


डॉ. योगेंद्र ने भरोसा दिलाया है कि वे किसी दिन पगडंडी के लिए अपने मन में बसे गांव की कहानी लिखेंगे. हमलोग इंतजार कर रहे हैं. फिलहाल उनकी एक कविता उनकी साइट पर मिली है. उठा कर ले आया हूं, आपके लिए.... देखिये तो गांव की कितनी जीवंत तसवीर खींची गयी है...
एक
कुहरा भरा दिन
गाँव-घर डूबे हुए
पेड़ों पर उग आयी है-एक सफ़ेद दुनिया।
इस दुनिया से कभी-कभी एक पक्षी
आसमान में पंख फैलाता है।
किसान हल को कंधे पर रखे
खेतों की ओर चले जा रहे हैं।
एक बस लगी है अभी
जिसमें लद रहे हैं मजदूर।
जा रहे हैं शहर
किसी चौराहे पर खड़े होंगे
और इंतज़ार करेंगे किसी खरीदार का।
दो
औरतें नाद में सानी लगा रही है
लड़कियां ठंड से सुसया रही हैं
बकरियों को हाँकते हुए
कुहरे में ओझल हो रही हैं।
कुछ लड़के चूड़ा -चक्की जेब में डाल
शिवाले पहुँच गए हैं और गुल्ली खेलने को हैं तैयार।
धान की पांतन भीगी हुई हैं
किसान इंतज़ार करेंगे सूरज देवता का।
मुशहर टोले से क्यों आवाज आ रही है
रोने का?
कुछ अघटित घटा है।
दुख की घड़ी है।
तीन
कुहरे से ढंके गाँव से
कई आवाजें फूटती हैं
गम है,लेकिन ठहाके भी हैं ।
झोपड़ी है तो महल भी हैं।
पागल-सा आदमी घूमता है
तो गाडियाँ भी दौड़ती हैं।
कोई मालिक है तो नौकर भी है।
गाँव अभी शहर नहीं बन पाया
लेकिन शहर की आदतें
हर घर में फैल गयी हैं।
कोई यहाँ मस्त है
तो कोई पस्त है।

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