बुधवार, 7 जनवरी 2015

कहाँ गए वो गाँव


संतोष त्रिवेदी जी ने इन दिनों गांव पर लिखी अपनी पुरानी कविता अपने फेसबुक वाल पर डाली है, वहीं से इसे उठा लाया हैं. पहली दो कविताएं उनकी है. तीसरी युवा मन्शेष ने उनसे प्रभावित होकर लिखी है... पढिये औऱ आनंद लीजिये...
1
गाँव, गिद्ध, गौरेया गायब
कोठरी, डेहरी, कथरी गायब,
अब तो सूखे साख खड़े हैं
कुआँ ते हैं पनिहारिन गायब !
गाँव किनारे वाला पीपल,
बरगद और लसोंहड़ा गायब,
मूंज, सनई कै खटिया,उबहनि
दरवाजे कै लाठी गायब !
बाबा कै बकुली औ धोती
अजिया केरि उघन्नी गायब,
लरिकन केर करगदा,कंठा
बिटियन कै बिछिया भै गायब !
नानी केरि कहानी गायब,
लोटिया अउर करइहा गायब,
अम्मा कै दुधहंडि औ भठिया,
बप्पा कै रामायन गायब !
आम्बन ते अम्बिया हैं गायब
चूल्हे-भूंजा ह्वारा गायब,
सोहरै,बनरा,गारी गावै-
वाली सुघर मेहेरिया गायब !
पइसन के आगे अब भइया
रिश्ते-नाते,रस्ते गायब,
शहर किहे हलकान बहुत
अब तो चैन हुँवौं ते गायब !
2
गारा-माटी के घर गायब
कुल्हरी, समसी, लोढ़वा गायब,
लढ़िहा, लग्घी, बैल कै गोईं
मुसका, चरही, पगही गायब !
ग्वाबरु, गोलई, टोकनी गायब
मूड़े कै वह गोड़री गायब,
अब कइसे दिन फिरिहैं सबके,
घूरे केरि रिहाइश गायब !
चारा-सानी, चोकरा गायब,
पड़वा, पड़िया, लैरा गायब ,
ख्यातन ते, खरिहानन ते
सीला-गल्ला, पैरा गायब !
दुलहिनि, पाहुन, बालम गायब
जनवासे ठंढाई गायब,
दुलहा, सरहज, नेगु-कल्यावा
लरिकन कै बरतउनी गायब !
भौजी संग ठिठोली गायब
बुआ चिढ़ाती हरदम, गायब ,
कब तक मनई बचा रहत है
चिट्ठी, पान-सुपारी गायब !
3
कुआँ पर के पुरवाही गायब
बैलन से हरवाही गायब
सरपत, नरकुल, छपरा गायब
माटी नरिया खपरा गायब..
गोजई काकुन बजरा गायब
हँड़िया कुचरी खखरा गायब
भौरा भरता सांवा गायब
करई परई आंवा गायब

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